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                                  ।।राम।।


विशेष कथा...घमंड और साधना...


*संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे. संत कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते.*


वह अपने नित्य नियम से गांव में निकले थे. इधर पास के गांव के जमींदार का एक ही जवान लडका था जो रात को अचानक मर गया. रात भर रोना-धोना चला.

आखिर में किसी ने सुझाया कि गांव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो. शायद वह कुछ कर दें. सब तैयार हो गए. लाश को लेकर पहुंचे कुटिया पर. देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ?

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तभी कमाल आ गए. उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएंगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है. सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है. आप काम बोलो क्या है ?

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लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी. कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है. अब क्या करें ! फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं. शायद बात बन जाए.

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कमाल ने कमंडल उठाया. लाश की तीन परिक्रमा की. फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटी मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया. लडका देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया. लोगों की खुशी की सीमा न रही.

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इधर कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गांव के जमींदार और सभी लोग गए हैं. कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे. उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते कूदते मिले. कबीर जी कुछ समझ नही पाए.

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आकर कमाल से पूछा कया बात हुई ? तो कमाल तो कुछ ओर ही बताने लगा. बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहां तो मैं सब संभाल लूंगा.

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कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना. ये तो सब अब मैं ही कर लूंगा. अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो.

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कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है. पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है.

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कबीर जी ने कहा ठीक है. आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाउंगा यात्रा पर. तब तक तुम आस-पास के दो चार संतो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ. भजन में आने का निमंत्रण भी देना.

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कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था- 

कमाल भयो कपूत, 

कबीर को कुल गयो डूब.

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कमाल चिट्ठी लेकर गया एक संत के पास. उनको चिट्ठी दी. चिट्ठी पढ के वह समझ गए. उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?

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कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं. गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी. अब मैं सब कर ही लेता हूं तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ. तो वह जा रहे है ओर जाने से पहले भजन का आयोजन है.

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संत दोहे का अर्थ समझ गए. उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम. 

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संत जी ने कहा आज रूको और शाम को यहां भी थोडा चमत्कार दिखा दो. उन्होंने गांव में खबर करा दी. थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई. सब नाना प्रकार की बीमारी वाले. संत जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो.

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कमाल तो देख के चौंक गया. अरे, इतने सारे लोग हैं. इतने लोगों को कैसे ठीक करूं. यह मेरे बस का नहीं है. संत जी ने कहा- कोई बात नहीं. अब ये आए हैं तो निराश लौटाना ठीक नहीं. तुम बैठो.

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संत जी ने लोटे में जल लिया और राम नाम का एक बार उच्चारण करके छींट दिया. एक लाईन में खड़े सारे लोग ठीक हो गए. फिर दूसरी लाइन पर छींटा मारा वे भी ठीक. बस दो बार जल के छींटे मार कर दो बार राम बोला तो सभी ठीक हो के चले गए.

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संत जी ने कहा- अच्छी बात है कमाल. हम भजन में आएंगे. पास के गांव में एक सूरदास जी रहते हैं. उनको भी जाकर बुला लाओ फिर सभी इक्ठ्ठे होकर चलते हैं भजन में.

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कमाल चल दिया सूरदास जी को बुलाने. सारे रास्ते सोचता रहा कि ये कैसे हुआ कि एक बार राम कहते ही इतने सारे बीमार लोग ठीक हो गए. मैंने तीन बार प्रदक्षिणा की. तीन बार गंगा जल छिड़क कर तीन बार राम नाम लिया तब बात बनी.

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यही सोचते-सोचते सूरदास जी की कुटिया पर पहुंच गया. जाके सब बात बताई कि क्यों आना हुआ. कमाल सुना ही रहा था कि इतने में सूरदास बोले- बेटा जल्दी से दौड के जा. टेकरी के पीछे नदी में कोई बहा जा रहा है. जल्दी से उसे बचा ले.

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कमाल दौड के गया. टेकरी पर से देखा नदी में एक लडका बहा आ रहा था. कमाल नदी में कूद गया और लडके को बाहर निकाल कर अपनी पीठ जी लादके कुटिया की तरफ चलने लगा.

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चलते- चलते उसे विचार आया कि अरे सूरदास जी तो अंधे हैं. फिर उन्हें नदी और उसमें बहता लडका कैसे दिख गया. उसका दिमाग सुन्न हो गया था. लडके को भूमि पर रखा तो देखा कि लडका मर चुका था.

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सूरदास ने जल का छींटा मारा और बोला- “रा”. तब तक लडका उठ के चल दिया. अब तो कमाल अचंभित की अरे इन्हें तो पूरा राम भी नहीं बोला. खाली रा बोलते ही लडका जिंदा हो गया. 

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तब कमाल ने वह चिट्ठी खोल के खुद पढी की इसमें क्या लिखा है जब उसने पढा तो सब समझ मे आ गया.

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वापस आ के कबीर जी से बोला गुरु जी संसार मे एक से एक सिद्ध हैं उनके आगे मैं कुछ नहीं हूं. गुरु जी आप तो यहीं रहिए. अभी मुझे जाकर भ्रमण करके बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है.

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*कथा का तात्पर्य कि गुरू की कृपा से सिद्धियां मिलती हैं. उनका आशीर्वाद होता है तो साक्षात ईश्वर आपके साथ खड़े होते हैं. गुरू, गुरू ही रहेंगे. वह शिष्य के मन के सारे भाव पढ़ लेते हैं और मार्गदर्शक बनकर उन्हें पतन से बचाते हैं.*

प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

प्रस्तुतिकरण-

*पं. ऋषि राज मिश्रा*

*(ज्योतिष आचार्य)*

*।।जय जय श्री राम।।*

*।।हर हर महादेव।।*

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*आइये श्री रामचरितमानस के त्रिवेणी संगम में स्नान करें*



कुंद इंदु सम देह,उमा रमन करुना अयन ,

जाहि दीन पर नेह,करउ कृपा मर्दन मयन।


अर्थ:--

जिनका कुंद के पुष्प और चंद्रमा के समान(गौर) शरीर है,जो पार्वती जी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका दिनों पर स्नेह है, वे कामदेव का मर्दन करने वाले(शंकर जी) मुझ पर कृपा करें।


विवेचना:--- गोस्वामी तुलसीदास जी ने सर्वप्रथम शिव पार्वती जी की श्रद्धा विश्वास के रूप में वंदना की थी, अगले ही श्लोक में उनकी वंदना, वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणं...... अर्थात गुरु रूप में की थी और अब यहाँ इस सोरठे में उनकी वंदना देवरूप में कर रहे हैं।


भगवान शिव का स्वरुप कुंद के पुष्प और चंद्रमा के समान उज्ज्वल (श्वेत) है।प्रजापति दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह के पश्चात हिमवान के यहाँ जन्म लेने से सती का नाम पार्वती हुआ।


 शिव जो को फिर से पति रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तप किया था इसलिए वे शिव जी की प्रियतमा हैं। भगवान शंकर सहज दयालु हैं और दीन दुखियों पर स्नेह करने वाले हैं। और कामदेव को भस्म करने वाले भी हैं। ऐसे भगवान शंकर मुझ पर कृपा करें।


आध्यात्मिक रहस्य:--

यहाँ भगवान शिव की वंदना, कामदेव का मर्दन करने वाले कह कर शिव कृपा की प्रार्थना की है।


इसके दो कारण हैं। लगभग सभी धर्म प्रेमी ये जानते हैं कि भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए,देवताओं ने कामदेव को भेजा था, और उसकी माया के प्रचंड प्रभाव से समस्त सृष्टि उस कामवेग के प्रभाव में आगयी थी।


 इसी कारण उनकी समाधि भंग भी हुई थी। पर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर, कामदेव को भस्म कर दिया था।


साधक के जीवन में भी यह काम का प्रचंड वेग उन्हें साधना मार्ग से विचलित कर देता है, महर्षि विश्वामित्र, देवर्षि नारद जैस

(जप तप कछु न होंहि तेहि काला,हे प्रभु मिलहिं कवन विधि बाला)

महान ऋषि भी इसके प्रभाव से नहीं बच सके थे, और स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी भी अपने गृहस्थ जीवन में, उस कामवेग के प्रभाव में आ ही चुके थे।


कहते हैं कि एक बार तुलसी दास जी की पत्नी मायके गयी हुई थीं। वर्षा की ऋतु थी, घटाटोप बादल छाए हुए थे। गोस्वामी जी को पत्नी की याद सताने लगी थी वे उस घनी अँधेरी रात में, पत्नी से मिलने के लिए, ससुराल के लिए चल दिए। 


रास्ते में एक नदी पड़ती थी, नदी में बाढ़ आई हुई थी, कोई नाव वहाँ नहीं थी, तभी पानी में किनारे कुछ लट्ठे सा बहता हुआ दिखाई दिया वे उसी पर सवार हो किसी तरह नदी पार कर गए। 


ससुराल में पहुंचने पर घनघोर अँधेरी रात में सब गहरी नींद सो रहे थे। इन्हें घर के पिछवाड़े पत्नी के शयन कक्ष की खिड़की से एक रस्सी लटकती दिखाई दी बस उसी को पकड़ पत्नी के कमरे में पहुँच गए।


पत्नी को जगाया तो वो आश्चर्य में पड़ गयी। पूछा अंदर कैसे आये ?


 उत्तर था कि खिड़की के बाहर रस्सी लटकी हुई थी उसी को पकड़ कर आ गया।


नदी कैसे पार की ,नाव तो मिली नहीं होगी?


उत्तर था, एक मोटा लट्ठा तैरता मिला उसी के सहारे नदी पार कर ली।


*पत्नी ने जब दीपक जला कर देखा तो खिड़की पर एक विशाल साँप लटका हुआ था, जनाब उसी को पकड़ कर खिड़की में चढ़ आये थे।*


*नदी किनारे जाकर देखा तो लट्ठा नहीं वो तो एक पानी में बहती हुई लाश थी*


तब उनकी पत्नी रत्नावली ने धिक्कारा था उन्हें, और कहा, " मेरी हाड़ मांस की देह के प्रति जो तुम्हारी दीवानगी है अगर उतनी ही प्रभु श्री राम के चरणों में होती, तो तुम धन्य हो जाते। "


और वही से वो श्रीमान राम बोला, *गोस्वामी तुलसी दास बनने की यात्रा पर चल दिएथे।*


 वही आशंका थी, साधक के जीवन में परमात्म चेतना का शक्तिप्रवाह जब अवतरित होता है तो कभी कभी प्रारब्ध वश प्रचंड कामवेग के प्रभाव में उसकी साधना भंग हो जाती है तुलसी दास जी इसी कारण कामदेव को भस्म करने वाले भगवान शंकर की कृपा की प्रार्थना कर रहे थे।

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दूसरा कारण था कि साधना मार्ग पर चलते हुए , जहां हम दोनों भौहों के बीच तिलक लगाते हैं, वहाँ आज्ञा चक्र होता है, उसी को तीसरा नेत्र कहते हैं, वहाँ उगते हुए सूर्य के मध्य आदिशक्ति गायत्री का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र जप करने से विवेक दृष्टि का जागरण होता है। 


इसी कारण श्री सत्य सनातन धर्म में 7से 11 वर्ष के बालकों को उपनयन संस्कार (जनेऊ) करा कर गुरुकुल में, सद्गुरु के सान्निध्य में गायत्री मंत्र जप, यज्ञ से जोड़ दिया जाता था।


*श्री रामचरितमानस* की रचना भी सूक्ष्म विवेक दृष्टि का जागरण हुए बिना संभव नहीं था अतः भगवान शिव की कृपा इस रूप में अपेक्षित थी।


*जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।*

*तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥*


भावार्थ:-जिस भीषण हलाहल विष से सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन! तू उन शंकरजी को क्यों नहीं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है?

*प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली*

*-प्रस्तुतिकरण-*

*पं. ऋषि राज मिश्रा*

*(ज्योतिष आचार्य)*


*।।जय जय श्री राम।।*

*।।हर हर महादेव।।*


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