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                                  ।।राम।।


विशेष कथा...घमंड और साधना...


*संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे. संत कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते.*


वह अपने नित्य नियम से गांव में निकले थे. इधर पास के गांव के जमींदार का एक ही जवान लडका था जो रात को अचानक मर गया. रात भर रोना-धोना चला.

आखिर में किसी ने सुझाया कि गांव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो. शायद वह कुछ कर दें. सब तैयार हो गए. लाश को लेकर पहुंचे कुटिया पर. देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ?

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तभी कमाल आ गए. उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएंगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है. सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है. आप काम बोलो क्या है ?

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लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी. कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है. अब क्या करें ! फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं. शायद बात बन जाए.

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कमाल ने कमंडल उठाया. लाश की तीन परिक्रमा की. फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटी मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया. लडका देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया. लोगों की खुशी की सीमा न रही.

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इधर कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गांव के जमींदार और सभी लोग गए हैं. कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे. उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते कूदते मिले. कबीर जी कुछ समझ नही पाए.

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आकर कमाल से पूछा कया बात हुई ? तो कमाल तो कुछ ओर ही बताने लगा. बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहां तो मैं सब संभाल लूंगा.

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कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना. ये तो सब अब मैं ही कर लूंगा. अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो.

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कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है. पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है.

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कबीर जी ने कहा ठीक है. आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाउंगा यात्रा पर. तब तक तुम आस-पास के दो चार संतो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ. भजन में आने का निमंत्रण भी देना.

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कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था- 

कमाल भयो कपूत, 

कबीर को कुल गयो डूब.

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कमाल चिट्ठी लेकर गया एक संत के पास. उनको चिट्ठी दी. चिट्ठी पढ के वह समझ गए. उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?

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कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं. गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी. अब मैं सब कर ही लेता हूं तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ. तो वह जा रहे है ओर जाने से पहले भजन का आयोजन है.

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संत दोहे का अर्थ समझ गए. उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम. 

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संत जी ने कहा आज रूको और शाम को यहां भी थोडा चमत्कार दिखा दो. उन्होंने गांव में खबर करा दी. थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई. सब नाना प्रकार की बीमारी वाले. संत जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो.

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कमाल तो देख के चौंक गया. अरे, इतने सारे लोग हैं. इतने लोगों को कैसे ठीक करूं. यह मेरे बस का नहीं है. संत जी ने कहा- कोई बात नहीं. अब ये आए हैं तो निराश लौटाना ठीक नहीं. तुम बैठो.

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संत जी ने लोटे में जल लिया और राम नाम का एक बार उच्चारण करके छींट दिया. एक लाईन में खड़े सारे लोग ठीक हो गए. फिर दूसरी लाइन पर छींटा मारा वे भी ठीक. बस दो बार जल के छींटे मार कर दो बार राम बोला तो सभी ठीक हो के चले गए.

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संत जी ने कहा- अच्छी बात है कमाल. हम भजन में आएंगे. पास के गांव में एक सूरदास जी रहते हैं. उनको भी जाकर बुला लाओ फिर सभी इक्ठ्ठे होकर चलते हैं भजन में.

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कमाल चल दिया सूरदास जी को बुलाने. सारे रास्ते सोचता रहा कि ये कैसे हुआ कि एक बार राम कहते ही इतने सारे बीमार लोग ठीक हो गए. मैंने तीन बार प्रदक्षिणा की. तीन बार गंगा जल छिड़क कर तीन बार राम नाम लिया तब बात बनी.

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यही सोचते-सोचते सूरदास जी की कुटिया पर पहुंच गया. जाके सब बात बताई कि क्यों आना हुआ. कमाल सुना ही रहा था कि इतने में सूरदास बोले- बेटा जल्दी से दौड के जा. टेकरी के पीछे नदी में कोई बहा जा रहा है. जल्दी से उसे बचा ले.

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कमाल दौड के गया. टेकरी पर से देखा नदी में एक लडका बहा आ रहा था. कमाल नदी में कूद गया और लडके को बाहर निकाल कर अपनी पीठ जी लादके कुटिया की तरफ चलने लगा.

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चलते- चलते उसे विचार आया कि अरे सूरदास जी तो अंधे हैं. फिर उन्हें नदी और उसमें बहता लडका कैसे दिख गया. उसका दिमाग सुन्न हो गया था. लडके को भूमि पर रखा तो देखा कि लडका मर चुका था.

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सूरदास ने जल का छींटा मारा और बोला- “रा”. तब तक लडका उठ के चल दिया. अब तो कमाल अचंभित की अरे इन्हें तो पूरा राम भी नहीं बोला. खाली रा बोलते ही लडका जिंदा हो गया. 

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तब कमाल ने वह चिट्ठी खोल के खुद पढी की इसमें क्या लिखा है जब उसने पढा तो सब समझ मे आ गया.

.

वापस आ के कबीर जी से बोला गुरु जी संसार मे एक से एक सिद्ध हैं उनके आगे मैं कुछ नहीं हूं. गुरु जी आप तो यहीं रहिए. अभी मुझे जाकर भ्रमण करके बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


*कथा का तात्पर्य कि गुरू की कृपा से सिद्धियां मिलती हैं. उनका आशीर्वाद होता है तो साक्षात ईश्वर आपके साथ खड़े होते हैं. गुरू, गुरू ही रहेंगे. वह शिष्य के मन के सारे भाव पढ़ लेते हैं और मार्गदर्शक बनकर उन्हें पतन से बचाते हैं.*

प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

प्रस्तुतिकरण-

*पं. ऋषि राज मिश्रा*

*(ज्योतिष आचार्य)*

*।।जय जय श्री राम।।*

*।।हर हर महादेव।।*

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*आइये श्री रामचरितमानस के त्रिवेणी संगम में स्नान करें*



कुंद इंदु सम देह,उमा रमन करुना अयन ,

जाहि दीन पर नेह,करउ कृपा मर्दन मयन।


अर्थ:--

जिनका कुंद के पुष्प और चंद्रमा के समान(गौर) शरीर है,जो पार्वती जी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका दिनों पर स्नेह है, वे कामदेव का मर्दन करने वाले(शंकर जी) मुझ पर कृपा करें।


विवेचना:--- गोस्वामी तुलसीदास जी ने सर्वप्रथम शिव पार्वती जी की श्रद्धा विश्वास के रूप में वंदना की थी, अगले ही श्लोक में उनकी वंदना, वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणं...... अर्थात गुरु रूप में की थी और अब यहाँ इस सोरठे में उनकी वंदना देवरूप में कर रहे हैं।


भगवान शिव का स्वरुप कुंद के पुष्प और चंद्रमा के समान उज्ज्वल (श्वेत) है।प्रजापति दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह के पश्चात हिमवान के यहाँ जन्म लेने से सती का नाम पार्वती हुआ।


 शिव जो को फिर से पति रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तप किया था इसलिए वे शिव जी की प्रियतमा हैं। भगवान शंकर सहज दयालु हैं और दीन दुखियों पर स्नेह करने वाले हैं। और कामदेव को भस्म करने वाले भी हैं। ऐसे भगवान शंकर मुझ पर कृपा करें।


आध्यात्मिक रहस्य:--

यहाँ भगवान शिव की वंदना, कामदेव का मर्दन करने वाले कह कर शिव कृपा की प्रार्थना की है।


इसके दो कारण हैं। लगभग सभी धर्म प्रेमी ये जानते हैं कि भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए,देवताओं ने कामदेव को भेजा था, और उसकी माया के प्रचंड प्रभाव से समस्त सृष्टि उस कामवेग के प्रभाव में आगयी थी।


 इसी कारण उनकी समाधि भंग भी हुई थी। पर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर, कामदेव को भस्म कर दिया था।


साधक के जीवन में भी यह काम का प्रचंड वेग उन्हें साधना मार्ग से विचलित कर देता है, महर्षि विश्वामित्र, देवर्षि नारद जैस

(जप तप कछु न होंहि तेहि काला,हे प्रभु मिलहिं कवन विधि बाला)

महान ऋषि भी इसके प्रभाव से नहीं बच सके थे, और स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी भी अपने गृहस्थ जीवन में, उस कामवेग के प्रभाव में आ ही चुके थे।


कहते हैं कि एक बार तुलसी दास जी की पत्नी मायके गयी हुई थीं। वर्षा की ऋतु थी, घटाटोप बादल छाए हुए थे। गोस्वामी जी को पत्नी की याद सताने लगी थी वे उस घनी अँधेरी रात में, पत्नी से मिलने के लिए, ससुराल के लिए चल दिए। 


रास्ते में एक नदी पड़ती थी, नदी में बाढ़ आई हुई थी, कोई नाव वहाँ नहीं थी, तभी पानी में किनारे कुछ लट्ठे सा बहता हुआ दिखाई दिया वे उसी पर सवार हो किसी तरह नदी पार कर गए। 


ससुराल में पहुंचने पर घनघोर अँधेरी रात में सब गहरी नींद सो रहे थे। इन्हें घर के पिछवाड़े पत्नी के शयन कक्ष की खिड़की से एक रस्सी लटकती दिखाई दी बस उसी को पकड़ पत्नी के कमरे में पहुँच गए।


पत्नी को जगाया तो वो आश्चर्य में पड़ गयी। पूछा अंदर कैसे आये ?


 उत्तर था कि खिड़की के बाहर रस्सी लटकी हुई थी उसी को पकड़ कर आ गया।


नदी कैसे पार की ,नाव तो मिली नहीं होगी?


उत्तर था, एक मोटा लट्ठा तैरता मिला उसी के सहारे नदी पार कर ली।


*पत्नी ने जब दीपक जला कर देखा तो खिड़की पर एक विशाल साँप लटका हुआ था, जनाब उसी को पकड़ कर खिड़की में चढ़ आये थे।*


*नदी किनारे जाकर देखा तो लट्ठा नहीं वो तो एक पानी में बहती हुई लाश थी*


तब उनकी पत्नी रत्नावली ने धिक्कारा था उन्हें, और कहा, " मेरी हाड़ मांस की देह के प्रति जो तुम्हारी दीवानगी है अगर उतनी ही प्रभु श्री राम के चरणों में होती, तो तुम धन्य हो जाते। "


और वही से वो श्रीमान राम बोला, *गोस्वामी तुलसी दास बनने की यात्रा पर चल दिएथे।*


 वही आशंका थी, साधक के जीवन में परमात्म चेतना का शक्तिप्रवाह जब अवतरित होता है तो कभी कभी प्रारब्ध वश प्रचंड कामवेग के प्रभाव में उसकी साधना भंग हो जाती है तुलसी दास जी इसी कारण कामदेव को भस्म करने वाले भगवान शंकर की कृपा की प्रार्थना कर रहे थे।

********

दूसरा कारण था कि साधना मार्ग पर चलते हुए , जहां हम दोनों भौहों के बीच तिलक लगाते हैं, वहाँ आज्ञा चक्र होता है, उसी को तीसरा नेत्र कहते हैं, वहाँ उगते हुए सूर्य के मध्य आदिशक्ति गायत्री का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र जप करने से विवेक दृष्टि का जागरण होता है। 


इसी कारण श्री सत्य सनातन धर्म में 7से 11 वर्ष के बालकों को उपनयन संस्कार (जनेऊ) करा कर गुरुकुल में, सद्गुरु के सान्निध्य में गायत्री मंत्र जप, यज्ञ से जोड़ दिया जाता था।


*श्री रामचरितमानस* की रचना भी सूक्ष्म विवेक दृष्टि का जागरण हुए बिना संभव नहीं था अतः भगवान शिव की कृपा इस रूप में अपेक्षित थी।


*जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।*

*तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥*


भावार्थ:-जिस भीषण हलाहल विष से सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन! तू उन शंकरजी को क्यों नहीं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है?

*प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली*

*-प्रस्तुतिकरण-*

*पं. ऋषि राज मिश्रा*

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આગવી ઓળખ વ્યક્તિની

"આગવી ઓળખ વ્યક્તિની"


      વિશ્વમાં અનેક વ્યક્તિઓ છે,પરંતુ એમાં ય વિશ્વ વિખ્યાત બહુ ઓછા વ્યક્તિઓ હોય છે.વ્યક્તિની ઓળખ તેના સ્વભાવ,ગુણ અને લક્ષણો ને આભારી છે.મહાન વ્યક્તિઓ ની આગવી ઓળખ એના કોઈ એક સદગુણ પર થતી હોય છે. કોઈ પણ વ્યક્તિ એક જ આદર્શ ગુણ ને કેળવે તો તેના નામ સાથે એક વિશેષણ ઉમેરાય જાય છે. આવા આપણા દેશમાં ય ઘણા વ્યક્તિઓ છે,જે તેમના આગવા ગુણ, લક્ષણ અને સ્વભાવ થી ઓળખાય છે.



ગાંધીજી-અહિંસા ના પૂજારી, સરદાર પટેલ-લોખંડી પુરુષ,સરોજિની નાયડુ-હિંદ નું બુલબુલ,ખાન અબ્દુલ ગફરખાન-સરહદના ગાંધી,લતા મંગેશકર-ભારત ની કોયલ,વિનોબા ભાવે- ભુદાન યજ્ઞ ના પ્રણેતા,લાલ બહાદુર શાસ્ત્રી-સાદગી ની મૂર્તિ,

જેવા બિરુદ પામ્યા છે.જે વ્યક્તિઓ એ પોતાનું જીવન પરમાર્થ માં અર્પણ કર્યું તેમને દુનિયા યાદ કરે છે.

   આજે ધનાઢય લોકો ઘણા છે,પણ તેઓ એ પોતાના સ્વાર્થ લઇ ને લોકોપયોગી ઉત્પાદન કર્યા છે.પોતાનું નામ ગિનિસ બુક માં આવે તેવી અપેક્ષા રાખતા હોય છે.  

    યુવા પેઢી માટે સ્વામી વિવેકાનંદ 

મિશાલ છે.ઉચ્ચ અભ્યાસ હોવા છતાં ભારતીય પહેરવેશ નું ગૌરવ વધાર્યું.

ચરિત્ર દૂધ જેટલું ઉજળું..ધન,દોલત,

પદ,પ્રતિષ્ઠા,સંસાર ને અવગણી યુવાનો ને પ્રેરક બળ પૂરું પાડનાર યુવાની માં દેહ છોડ્યો..

    આજની યુવા પેઢીઓ માટે લાલબત્તી ધરવાનો આશય એટલો જ કે જો યુવાનો ચરિત્ર હીન,વ્યસની,

ખૂની,ચોરી,લૂંટ,બળાત્કારી બનશે તો સમાજનું ઉત્થાન થવાના બદલે અધોગતિ તરફ ધકેલાશે. યુવાનો નોકરી કરતા હોય કે અભ્યાસ કે બેરોજગાર હોય. તો પણ પોતાના ચારિત્ર્ય ને જાળવી રાખે,ચરિત્ર ચિતરાઈ જાય તેવી પ્રવૃત્તિ થી દુર રહેશે 

એ જ યુવાન સફળ થશે. 

    કોઈ ની વાહ વાહ! કે પ્રસંશા,

માન-સન્માન થી ફુલાઈ જવાની જરૂર નથી. પ્રસંશા એ ધીમું ઝેર છે.પ્રગતિ,

ઉન્નતિ,મનોબળ ને અવરોધતુ બળ છે.

  મહાન પુરુષો જેવા બનવા માટે જીવન માં એક સદગુણ નું આચરણ કરવાની જરૂર છે. નકારાત્મક વિચારો ને ક્યારેય સ્થાન ન આપો.એવા મિત્રો બનાવો કે જે નિઃવ્યસની હોય,ઉત્તમ ચારિત્ર્ય હોય,બુદ્ધિશાળી અને બુદ્ધિ જીવી પણ હોય.પોતના કરતાં વધુ પ્રવીણ હોય કે સમકક્ષ હોય... 

ગરીબ હશે તો ચાલશે,પણ ચારિત્ર્યવાન હોવો જોઈએ. 

   પોતાની આગવી ઓળખ બનાવવી છે,તો નિષ્ઠાવાન,પ્રામાણિક,વફાદાર

અને ચારિત્ર્યવાન બનો.લોકો તમને પૂજસે. હલકી પ્રવૃતિઓ થી દુર રહો.

એક એવો હુન્નર તો હોવો જ જોઈએ જેનાથી તમારી ઓળખ ઉભી થાય. 

   યુવા ભારત ને યુવાનો ની જરૂર છે.

પોતાની આગવી ઓળખ માટે એક શ્રેષ્ઠ ગુણ વિકસાવવાની જરૂર છે.

ક્રોધ અને ગુસ્સા થી હંમેશા અળગા રહો. કોઈ પણ કાર્ય ને ઉત્સાહ થી પૂર્ણ કરો.ઉતાવળો નિર્ણય ક્યારેય ન લેવો.

કોઈ પણ કાર્ય કરતા પહેલાં પરિણામ વિશે અવશ્ય વિચારી લેવું. 

પોતાના માં શુ ખામી અને શું ખૂબી છે જાતે નક્કી કરો..

જો તમે વ્યસન કરો છો તો તમે ઊંચા હોદ્દા પર હો તો પણ તમે ગુલામ છો.

તમાકુ,પડીકી,ધુમ્રપાન,મદિરા પાન,

ડ્રગસ લેતા હોય તો છોડી દો..

 ગમે તેવા શક્તિશાળી વ્યક્તિ વ્યસન ના ગુલામ હોય તો કઈ પ્રાપ્ત કરતા નથી. આજના સમય માં ડ્રગસ ના રવાડે ચડેલા અભિનેતા ઓ ના છોકરા ઓ જેલ માં છે.જો તમે વ્યસની હસો તો તમારા સંતાન પણ વ્યસની બનશે.

સ્વામી વિવેકાનંદ નું કહેવું હતું કે મને મારી જેવા બાર યુવાનો આપો.. હું દેશ બદલી નાખવા તૈયાર છું.. 

 શાળા કક્ષાએ વ્યસન મુક્તિ નો કાર્યક્રમ યોજી ને બાળકો ના વાલીઓ માં જાગૃતિ લાવો.વાલિયા લૂંટારું માંથી વાલ્મિકી બનાવવાની તમારા માં શક્તિ છે

એક યુવા તરીકે લોકહિત, લોક કલ્યાણ ના કાર્યો માં અગ્રેસર રહો..

"જોશ ન ઠંડા હોને પાવે,કદમ મિલાકર ચલ. મંઝીલ તેરે પાંવ ચુમેગી,આજ નહીં તો કલ."

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                   हिचकियाँ


वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । नाम था कांता बाई...


बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी। क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए।


एक दिन की बात है कांता बाई अपने लल्ला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी...


और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आई, जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकियां रुक गयी।


अच्छा महसूस करने लग गयी तो उसने अपनी पुत्री को सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे वो हिचकियो में बेचैन हो गयी।


तब पुत्री ने कहा कि माँ मैं तुम्हे सच्चे मन से याद कर रही थी उसी के कारण तुम्हे हिचकियां आ रही थीं और अब जब मैं आ गयी हूँ तो तुम्हारी हिचकिया भी बंद हो चुकी हैं।


कांता बाई हैरान रह गयी कि ऐसा भी भला होता है ? तब पुत्री ने कहा हाँ माँ ऐसा ही होता है, जब भी हम किसी अपने को मन से याद करते है तो हमारे अपने को हिचकियां आने लगती हैं।


तब कांता बाई ने सोचा कि मैं तो अपने ठाकुर को हर पल याद करती रहती हूँ यानी मेरे लल्ला को भी हिचकियां आती होंगी ??


हाय मेरा छोटा सा लल्ला हिचकियों में कितना बेचैन हो जाता होगा.! नहीं ऐसा नहीं होगा अब से मैं अपने लल्ला को जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी और... उसी दिन से कांता बाई ने ठाकुर को याद करना छोड़ दिया।


अपने लल्ला को भी अपनी पुत्री को ही दे दिया सेवा करने के लिए। लेकिन कांता बाई ने एक पल के लिए भी अपने लल्ला को याद नहीं किया.। और ऐसा करते-करते हफ्ते बीत गए और फिर एक दिन...


जब कांता बाई सो रही थी तो साक्षात बांके बिहारी कांता बाई के सपने में आते है और कांता बाई के पैर पकड़ कर ख़ुशी के आंसू रोने लगते हैं.? कांता बाई फौरन जाग जाती है और उठ कर प्रणाम करते हुए रोने लगती है और कहती है कि...


प्रभु आप तो उन को भी नहीं मिल पाते जो समाधि लगाकर निरंतर आपका ध्यान करते रहते हैं। फिर मैं पापिन जिसने आपको याद भी करना छोड़ दिया है आप उसे दर्शन देने कैसे आ गए ??


तब बिहारी जी ने मुस्कुरा कर कहा- माँ, कोई भी मुझे याद करता है तो या तो उसके पीछे किसी वस्तु का स्वार्थ होता है। या फिर कोई साधू ही जब मुझे याद करता है तो उसके पीछे भी उसका मुक्ति पाने का स्वार्थ छिपा होता है।


लेकिन धन्य हो माँ तुम ऐसी पहली भक्त हो जिसने ये सोचकर मुझे याद करना छोड़ दिया कि कहीं मुझे हिचकियां आती होंगी। मेरी इतनी परवाह करने वाली माँ मैंने पहली बार देखी है।


तभी कांता बाई अपने मिटटी के शरीर को छोड़ कर अपने लल्ला में ही लीन हो जाती हैं।


इसलिए बंधुओ वो ठाकुर तुम्हारी भक्ति और चढ़ावे के भी भूखे नहीं हैं, वो तो केवल तुम्हारे प्रेम के भूखे है उनसे प्रेम करना सीखो।

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*रामायण में श्रीराम के व्यक्तित्व से कई बातें सीख सकते हैं।*

*मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम* ने सीखाया है कि नियम और संयम के साथ कैसे जीवन जीना चाहिए। लंका कांड के मेघनाद और श्रीराम युद्ध प्रसंग में भी बताया है कि अगर कोई इंसान आपकी आलोचना करें या गाली दे तो उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।



लंका कांड में युद्ध के दौरान रावण का बेटा मेघनाद लड़ते-लड़ते श्रीराम के पास पहुंच गया और उन्हें देखकर दुर्वचन कहने लगा। इस दृश्य पर तुलसीदासजी ने लिखा- *रघुपति निकट गयउ घननादा।*

*नाना भांति करेसि दुर्बादा।।* 

मेघनाद ने श्रीराम के पास जाकर अलग-अलग प्रकार से दुर्वचनों का प्रयोग किया। कटुवचन, गालियां, अप्रिय वाणी अपने आप में शस्त्र ही होते हैं। कुछ लोग इन्हीं से प्रहार करते हैं लेकिन, श्रीराम ने मेघनाद के कटुवचन धैर्य के साथ सुने और मुस्कुरा दिए। जिससे मेघनाद और ज्यादा क्रोधित हुआ। 


इस घटना पर तुलसीदास जी ने लिखा कि 

*देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना।*

*करै लाग माया बिधि नाना।।*


यानी श्रीराम का प्रताप देख मूर्ख मेघनाद लज्जित होकर भांति-भांति से माया करने लगा। मेघनाद ने श्रीराम को गुस्सा दिलाने और उकसाने की कोशिश की जिसको श्रीराम ने धैर्य और बुद्धि के उपयोग से निष्फल कर दिया। इस तरह श्रीराम सिखा गए कि यदि कोई अप्रिय शब्द बोल रहा हो तो उन्हें स्वीकार न करें। यानी दिल पर नहीं लेना चाहिए। ऐसा करने से आप गुस्से में कोई गलती नहीं करेंगे, जिससे नुकसान से बच जाएंगे।

*प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली*

*-प्रस्तुतिकरण-*

*पं. ऋषि राज मिश्रा*

*(ज्योतिष आचार्य)*

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।।जय जय श्री राम।।

।।हर हर महादेव।।

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Wednesday, October 20, 2021

NAS 2017 માં પસંદગી પામેલ શાળાઓ દાહોદ જિલ્લો


NAS 2017 માં દાહોદ જિલ્લાની કઈ કઈ શાળાઓ પસંદ થયેલ હતી એનું લિસ્ટ મુકેલ છે.

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Saturday, October 16, 2021

🌑👀📓દિવાળીના શુભ મુહૂર્ત

                     દિવાળીના શુભ મુહૂર્ત





દિવાળીના શુભ મુહૂર્ત જોવા માટે 👉CLICK HERE


સ્વામી મુક્તાનંદ પરમહંસના પુસ્તકોનું લિસ્ટ.


51 શક્તિપીઠ વિશે જાણો -ચિત્રો સહીત


 ✔પ્રેરણાદાયી વાર્તા


સ્વામી વિવેકાનંદના પ્રેરણાદાયી વિચારો


સોનેરી સુવિચારો

        


                    ધનતેરશની શુભકામના  




                    અષ્ટ પ્રકારની લક્ષ્મી હોય છે. 


૧. ધન લક્ષ્મી : જેનાથી તમારી અર્થવ્યવસ્થા સુદ્રઢ થાય. 


૨. ધાન્ય લક્ષ્મી : આજીવન તમારા શરીરને પોષણ આપનારું અન્ન મળી રહે.


૩. ધૈર્ય લક્ષ્મી : તમારા જીવનમાંથી ધીરજ ખૂટે નહિ. 


૪. શૌર્ય લક્ષ્મી : જીવનમાં વિકટ પરિસ્થિતિનો પ્રતિકાર કરવાની શક્તિ. 



૫. વિદ્યા લક્ષ્મી : જીવનમાં શારીરિક, માનસિક, કૌટુંબિક, આધ્યાત્મિક ઉન્નત્તિ કરાવનારી વિદ્યા પ્રાપ્ત થાય. 


૬. ક્રિયા લક્ષ્મી : જીવનમાં શારીરિક, માનસિક, ધાર્મિક, આધ્યાત્મિક, ઉન્નતિ કરાવનાર કર્મ થાય. 


૭. વિજય લક્ષ્મી : જીવનનાં દરેક ક્ષેત્રમાં સફળતારુપી વિજયની પ્રાપ્તિ. 


૮. રાજ્ય લક્ષ્મી : જે પ્રદેશમાં રહેતા હોય તે સમૃદ્ધ હોય. 

આમ આ આઠ પ્રકારની લક્ષ્મીનો તમારા જીવનમાં વાસ થાય અને તમારું જીવન શારીરિક, માનસિક, આર્થિક અને આધ્યાત્મિક ક્ષેત્રે સમૃદ્ધ બને એવી ભગવાનનાં ચરણમાં પ્રાર્થના !




મારી ડાયરી 1

 મારી ડાયરી


મારી ડાયરી -એક ગઝલ 




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!! *भलाई* !!
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``एक घर में दो भाई रहते थे। छोटी उम्र में ही उनके माता और पिता की मृत्यु हो गई थी। इस भरी विपत्ति को सहते हुए वे अपने खेतों में बड़ी मेहनत से काम करते थे। कुछ वर्षों के बाद बड़े भाई की शादी हो गई और फिर दो बच्चों के साथ उसका चार लोगों का परिवार हो गया। चूकी दूसरे बेटे की अभी शादी नहीं हुई थी फिर भी उपज को दो हिस्से में बांट दिया जाता था। एक दिन जब छोटा वाला भाई खेत में काम कर रहा था तो उसे विचार आया कि यह सही नहीं है कि हम बराबर बँटवारा करें। मैं अकेला हूँ और मेरी ज़रूरत भी बहुत अधिक नहीं हैं। 
मेरे भाई का परिवार बड़ा है, एवं उसकी ज़रूरत भी अधिक हैं। अपने दिमाग में इसी विचार के साथ वह रात अपने यहाँ से अनाज का एक बोरा ले जाकर भाई के खेत में चुपचाप रखने लगा। इसी दौरान बड़े भाई ने भी सोचा, कि यह सही नहीं है कि हम हर चीज का बराबर बँटवारा करें। मेरे पास मेरा ध्यान रखने के लिए पत्नी और बच्चे हैं लेकिन मेरे भाई का तो कोई परिवार नहीं है। अत: भविष्य में उसकी कौन देखभाल करेगा ? इसलिए मुझे उसे अधिक देना चाहिए

इस विचार के साथ वह हर दिन एक अनाज का बोरा लेता और अपने भाई के खेत में रख देता। यह सिलसिला बहुत दिनों तक चलता रहा, किन्तु दोनों भाई हैरान थे कि उनका अनाज कम क्यूँ नहीं हो रहा। एक दिन एक – दूसरे के खेतों में जाते समय उनकी मुलाकात हो गई। तब उन्हें पता चला कि आखिर इतने समय से क्या हो रहा था? वे ख़ुशी से एक – दूसरे के गले लगाकर रोने लगे।```

👉सीख👈

 सच्चे मन से किये गये भलाई के काम में कभी अपना नुकसान नहीं होता है।
!! *भलाई* !!
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(( हरि इच्छा बलवान् ))
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एक बार भगवान विष्णु गरुड़जी पर सवार होकर कैलाश पर्वत पर जा रहे थे। रास्ते में गरुड़जी ने देखा कि एक ही दरवाजे पर दो बाराते ठहरी थी।
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मामला उनके समझ में नहीं आया। फिर क्या था, पूछ बैठे प्रभु को।
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गरुड़जी बोले ! प्रभु ये कैसी अनोखी बात है कि विवाह के लिए कन्या एक और दो बारातें आई है। मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा है।
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प्रभु बोले- हां एक ही कन्या से विवाह के लिए दो अलग अलग जगह से बारातें आई है। एक बारात पिता द्वारा पसंद किये गये लड़के की है, और दूसरी माता द्वारा पसंद किये गये लड़के की है।
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यह सुनकर गरुड़जी बोले- आखिर विवाह किसके साथ होगा ?
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प्रभु बोले- जिसे माता ने पसंद किया और बुलाया है उसी के साथ कन्या का विवाह होगा।
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भगवान की बाते सुनकर गरुड़जी चुप हो गए और भगवान को कैलाश पर पहुंचाकर कौतुहल वश पुनः उसी जगह आ गए जहां दोनों बारातें ठहरी थी।
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गरुड़जी ने मन में विचार किया कि यदि मैं माता के बुलाए गए वर को यहां से हटा दूं तो कैसे विवाह संभव होगा।
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फिर क्या था; उन्होंने भगवद्विधान को देखने की जिज्ञासा के लिए तुरन्त ही उस वर को उठाया और ले जाकर समुद्र के एक टापू पर धर दिए।
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ऐसा कर गरुड़जी थोड़ी देर के लिए ठहरे भी नहीं थे कि उनके मन में अचानक विचार दौड़ा कि मैं तो इस लड़के को यहां उठा लाया हूँ पर यहां तो खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है, 
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ऐसे में इस निर्जन टापू पर तो यह भूखा ही मर जाएगा और वहां सारी बारात मजे से छप्पन भोग का आनन्द लेंगी, 
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यह कतई उचित नहीं है। इसका पाप अवश्य ही मुझे लगेगा। मुझे इसके लिए भी खाने का कुछ इंतजाम तो करना ही चाहिए।
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यदि विधि का विधान देखना है तो थोड़ा परिश्रम तो मुझे करना ही पड़ेगा। और ऐसा विचार कर वे वापस उसी स्थान पर फिर से आ गए।
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इधर कन्या के घर पर स्थिति यह थी कि वर के लापता हो जाने से कन्या की माता को बड़ी निराशा हो रही थी। परन्तु अब भी वह अपने हठ पर अडिग थी।
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अतः कन्या को एक भारी टोकरी में बैठाकर ऊपर से फल-फूल, मेवा-मिष्ठान्न आदि सजा कर रख दिया, जिसमें कि भोजन-सामग्री ले जाने के निमित्त वर पक्ष से लोग आए थे।

माता द्वारा उसी टोकरी में कन्या को छिपाकर भेजने के पीछे उसकी ये मंशा थी कि वर पक्ष के लोग कन्या को अपने घर ले जाकर वर को खोजकर उन दोनों का ब्याह करा देंगे।
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माता ने अपना यह भाव किसी तरह होने वाले समधि को सूचित भी कर दिया।
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अब संयोग की बात देखिये, आंगन में रखी उसी टोकरी को जिसमे कन्या की माता ने विविध फल-मेवा, मिष्ठान्नादि से भर कर कन्या को छिपाया था, गरुड़जी ने उसे भरा देखकर उठाया और ले उड़े।
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उस टोकरी को ले जाकर गरुड़जी ने उसी निर्जन टापू पर जहां पहले से ही वर को उठा ले जाकर उन्होंने रखा था, वर के सामने रख दिया।

इधर भूख के मारे व्याकुल हो रहे वर ने ज्यों ही अपने सामने भोज्य सामग्रियों से भरी टोकरी को देखा तो बाज की तरह उस पर झपटा।
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उसने टोकरी से जैसे ही खाने के लिए फल आदि निकालना शुरू किया तो देखा कि उसमें सोलहों श्रृंगार किए वह युवती बैठी है जिससे कि उसका विवाह होना था।
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गरुड़जी यह सब देख कर दंग रह गए। उन्हें निश्चय हो गया कि :–‘हरि इच्छा बलवान।’
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‘राम कीन्ह चाहैं सोई होई।
करै अन्यथा अस नहिं कोई।’
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फिर तो शुभ मुहुर्त विचारकर स्वयं गरुड़जी ने ही पुरोहिताई का कर्तव्य निभाया। वेदमंत्रों से विधिपूर्वक विवाह कार्य सम्पन्न कराकर वर-वधु को आशीर्वाद दिया और उन्हें पुनः उनके घर पहुंचाया।
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तत्पश्चात प्रभु के पास आकर सारा वृत्तांत निवादन किए और प्रभु पर अधिकार समझ झुंझलाकर बोले- 
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प्रभो ! आपने अच्छी लीला करी, सारा ब्याह कार्य हमीं से करवा लिया।
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भगवान गरुड़जी की बातों को सुनकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे थे।

*प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली*
-प्रस्तुतिकरण-
पं. ऋषि राज मिश्रा
(ज्योतिष आचार्य)
।।जय जय श्री राम।।
।।हर हर महादेव।।

Thursday, October 14, 2021

કદવાલ પ્રા. શાળા ફળીયા શિક્ષણ

 કદવાલ પ્રા. શાળા ફળીયા શિક્ષણ







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કોરોના જાગૃતિ માટેના પોસ્ટર

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Sunday, October 10, 2021

51 શક્તિપીઠ વિશે જાણો




51 શક્તિપીઠ નામ.pdf


૫૧ શક્તિપીઠના દર્શન કરો રંગીન ચિત્રો અને નામ સાથે pdf ફાઈલ 
સંદર્ભ -
તૈયાર કરનાર -દિલીપસિંહ અજીતસિંહ જાડેજા -મોરબી


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🐯એક વાર્તા - જંગલમાં સિંહ

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Saturday, October 9, 2021

🔱 આરતીનો અર્થ જાણો

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Sunday, October 3, 2021

આસો નવરાત્રીના નોરતા કઈ તારીખે જુઓ image

 







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Saturday, October 2, 2021

બાળગીત અભિનય ગીત ડાયટ દાહોદ

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