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 श्री कृष्ण की माया 


सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण से पूछा, "कान्हा, मैं आपकी माया के दर्शन करना चाहता हूँ, कैसी होती है ?"

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श्रीकृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की जिद पर श्रीकृष्ण ने कहा, "अच्छा, कभी वक्त आएगा तो बताऊंगा।"

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एक दिन कृष्ण ने कहा–सुदामा ! आओ, गोमती में स्नान करने चलें। 

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दोनों गोमती के तट पर गए। वस्त्र उतारे। दोनों नदी में उतरे। श्रीकृष्ण स्नान करके तट पर लौट आए। पीतांबर पहनने लगे।

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सुदामा ने देखा, कृष्ण तो तट पर चले गये है, मैं एक डुबकी और लगा लेता हूँ और... 

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जैसे ही सुदामा ने डुबकी लगाई सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है, वह बहे जा रहे हैं। 

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सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे रुके। घाट पर चढ़े। घूमने लगे। 

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घूमते-घूमते गांव के पास आए और वहाँ एक हथिनी ने उनके गले में फूल माला पहना दी। सुदामा हैरान...!

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लोग इकट्ठे हो गए। लोगों ने कहा, "हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गई है। हमारा नियम है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिस भी व्यक्ति के गले में माला पहना दे, वही हमारा राजा होता है। 

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हथिनी ने आपके गले में माला पहनाई है, इसलिए अब आप हमारे राजा हैं।"

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सुदामा हैरान हुए, मैं राजा बन गया। एक राजकन्या के साथ उनका विवाह भी हो गया। दो पुत्र भी पैदा हो गए।

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एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई, आखिर में मर गई। सुदामा दुख से रोने लगे, उसकी पत्नी जो मर गई थी, जिन्हें वह बहुत चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी। 

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लोग इकट्ठे हो गए, उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं, आप हमारे राजा हैं। लेकिन रानी जहाँ गई है, वहीं आपको भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है। 

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आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी जाएगी। आपको भी अपनी पत्नी की चिता में प्रवेश करना होगा। आपको भी अपनी पत्नी के साथ जाना होगा।

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यह सुनकर तो सुदामा की सांस रुक गई, हाथ-पांव फूल गए, अब मुझे भी मरना होगा, मेरी पत्नी की मौत हुई है, मेरी तो नहीं, भला मैं क्यों मरूँ, यह कैसा नियम है ?'

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सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु को भूल गये। उसका रोना भी बंद हो गया। अब वह स्वयं की चिंता में डूब गये, कहा भी, 'भई, मैं तो मायापुरी का वासी नहीं हूँ। 

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मुझ पर आपकी नगरी का कानून लागू नहीं होता, मुझे क्यों जलना होगा ? 

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लोग नहीं माने, कहा, 'अपनी पत्नी के साथ आपको भी चिता में जलना होगा, मरना होगा, यह यहाँ का नियम है।

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आखिर सुदामा ने कहा, 'अच्छा भई, चिता में जलने से पहले मुझे स्नान तो कर लेने दो,' 

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पहले तो लोग माने नहीं। फिर बात मान उन्होंने हथियारबंद लोगों की ड्यूटी लगा दी।

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सुदामा को स्नान करने दो, देखना कहीं भाग न जाए। रह-रह कर सुदामा रो उठते। 

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सुदामा इतना डर गये कि उनके हाथ-पैर कांपने लगे, वह नदी में उतरे, डुबकी लगाई और फिर जैसे ही बाहर निकले उन्होंने देखा, मायानगरी कहीं भी नहीं...

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किनारे पर तो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही पहन रहे थे और वह एक दुनिया घूम आये है। मौत के मुँह से बचकर निकले हैं।

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सुदामा नदी से बाहर आये और सुदामा रोए जा रहे थे। श्रीकृष्ण हैरान हुए, सबकुछ जानते थे फिर भी अनजान बनते हुए पूछा, 

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"सुदामा तुम रो क्यों रो रहे हो?"

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सुदामा ने पूछा, "कृष्ण मैंने जो देखा है, वह सच था या यह जो मैं देख रहा हूँ ?"

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श्रीकृष्ण मुस्कराए और कहा, "जो देखा, भोगा वह सच नहीं था, भ्रम था, स्वप्न था, माया थी मेरी और जो तुम अब मुझे देख रहे हो यही सच है। 

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मैं ही सच हूँ। मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है और जो मुझे ही सर्वत्र देखता है, महसूस करता है, उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती। 

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माया स्वयं का विस्मरण है माया अज्ञान है, माया परमात्मा से भिन्न, माया नर्तकी है नाचती है..नचाती है।"

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जो प्रभु श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं, भ्रमित नहीं होता। माया से निर्लेप रहता है। 

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वह जान जाता है, सुदामा भी जान गये थे, जो जान गया वह श्रीकृष्ण से अलग कैसे रह सकता है।




                  ””सदा मुस्कुराते रहिये””


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                           *🌹जय श्री कृष्णा🔥*



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