Sunday, November 21, 2021

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Saturday, November 20, 2021

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Tuesday, November 16, 2021

।।हरे कृष्णा।।


                              ।।हरे कृष्णा।।


वृन्दावन के एक संत की कथा है. वे श्री कृष्ण की आराधना करते थे.उन्होंने संसार को भूलने की एक युक्ति की. मन को सतत श्री कृष्ण का स्मरण रहे, उसके लिए महात्मा ने प्रभु के साथ ऐसा सम्बन्ध जोड़ा कि मै नन्द हूँ, बाल कृष्ण लाल मेरे बालक है।

वे लाला को लाड लड़ाते,यमुना जी स्नान करने जाते तो लाला को साथ लेकर जाते। भोजन करने बैठते तो लाला को साथ लेकर बैठते.ऐसी भावना करते कि कन्हैया मेरी गोद में बैठा है.


कन्हैया मेरे दाढ़ी खींच रहा है.श्री कृष्ण को पुत्र मानकर आनद करते.श्री कृष्ण के उपर इनका वात्सल्य भाव था।


महात्मा श्री कृष्ण की मानसिक सेवा करते थे. 


सम्पूर्ण दिवस मन को श्री कृष्ण लीला में तन्मय रखते, जिससे मन को संसार का चिंतन करने का अवसर ही न मिले.


निष्क्रय ब्रह्म का सतत ध्यान करना कठिन है, परन्तु लीला विशिष्ट ब्रह्म का सतत ध्यान हो सकता है,


महात्मा परमात्मा के साथ पुत्र का सम्बन्ध जोड़ कर संसार को भूल गये, परमात्मा के साथ तन्मय हो गये, श्री कृष्ण को पुत्र मानकर लाड लड़ाने लगे।


महात्मा ऐसी भावना करते कि कन्हैया मुझसे केला मांग रहा है।

बाबा! मुझे केला दो, ऐसा कह रहा है.महात्मा मन से ही कन्हैया को केला देते. 


महात्मा समस्त दिवस लाला की मानसिक सेवा करते और मन से भगवान को सभी वस्तुए देते.

कन्हैया तो बहुत भोले है. 


मन से दो तो भी प्रसन्न हो जाते है.महात्मा कभी कभी शिष्यों से कहते कि इस शरीर से गंगा स्नान कभी हुआ नहीं, वह मुझे एक बार करना है.


शिष्य कहते कि काशी पधारो.महात्मा काशी जाने की तैयारी करते परन्तु वात्सल्य भाव से मानसिक सेवा में तन्मय हुए की कन्हैया कहते- बाबा मै तुम्हारा छोटा सा बालक हूँ।


मुझे छोड़कर काशी नहीं जाना।इस प्रकार महात्मा सेवा में तन्मय होते, उस समय उनको ऐसा आभास होता था कि मेरा लाला जाने की मनाही कर रहा है।


मेरा कान्हा अभी बालक है. मै कन्हैया को छोड़कर यात्रा करने कैसे जाऊ?


मुझे लाला को छोड़कर जाना नहीं।

महात्मा अति वृद्ध हो गये. महात्मा का शरीर तो वृद्ध हुआ परन्तु उनका कन्हैया तो छोटा ही रहा.वह बड़ा हुआ ही नहीं! 


उनका प्रभु में बाल-भाव ही स्थिर रहा और एक दिन लाला का चिन्तन करते- करते वे मृत्यु को प्राप्त हो गये।


शिष्य कीर्तन करते- करते महात्मा को श्मशान ले गये.अग्नि - संस्कार की तैयारी हुई. 


इतने ही में एक सात वर्ष का अति सुंदर बालक कंधे पर गंगाजल का घड़ा लेकर वहां आया


.उसने शिष्यों से कहा - ये मेरे पिता है, मै इनका मानस-पुत्र हूँ। पुत्र के तौर पर अग्नि - संस्कार करने का अधिकार मेरा है.मै इनका अग्नि-संस्कार करूँगा.


पिता की अंतिम इच्छा पूर्ण करना पुत्र का धर्म है। मेरे पिता की गंगा-स्नान करने की इच्छा थी परन्तु मेरे कारण ये गंगा-स्नान करने नहीं जा सकते थे. 


इसलिए मै यह गंगाजल लाया हूँ। पुत्र जिस प्रकार पिता की सेवा करता है,इस प्रकार बालक ने महात्मा के शव को गंगा-स्नान कराया.


 संत के माथे पर तिलक किया, पुष्प की माला पहनाई और अंतिम वंदन करके अग्नि-संस्कार किया, सब देखते ही रह गये।


अनेक साधु- महात्मा थे परन्तु किसी की बोलने की हिम्मत ही ना हुई

अग्नि- संस्कार करके बालक एकदम अंतर्ध्यान हो गया.


उसके बाद लोगो को ख्याल आया कि महात्मा के तो पुत्र था ही नहीं बाल कृष्णलाल ही तो महात्मा के पुत्र रूप में आये थे।


महात्मा की भावना थी कि श्री कृष्ण मेरे पुत्र है, परमात्मा ने उनकी भावना पूरी की,


परमात्मा के साथ जीव जैसा सम्बन्ध बांधता है, वैसे ही सम्बन्ध से परमात्मा उसको मिलते है....!!!

                     (जय जय श्री राधे)

             प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

                            -प्रस्तुतिकरण-

                          पं. ऋषि राज मिश्रा

                         (ज्योतिष आचार्य)


                          ।।जय जय श्री राम।।

                           ।।हर हर महादेव।।

Friday, November 5, 2021

भाई दूज (यम द्वितीया) विशेष

                     भाई दूज (यम द्वितीया) विशेष

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                             पौराणिक महत्व

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शास्त्रों के अनुसार भाई को यम द्वितीया भी कहते हैं इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर उन्हें लंबी उम्र का आशीष देती हैं और इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है  ब्रजमंडल में इस दिन बहनें यमुना नदी में खड़े होकर भाईयों को तिलक लगाती हैं। 


अपराह्न व्यापिनी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 6 नवंबर शनिवार के दिन मनाया जाएगा।


भाई दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए।


यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को चावल खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। बहन चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।


इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल भी लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलती हैं।


 "गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े" 


इसी प्रकार इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है 


" सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे" 


इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।


                        भैया दूज की कथा 

                            

भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।


यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।


यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।



भाई दूज तिलक मुहूर्त

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भाई दूज तिलक मुहूर्त: दोपहर 01 बजकर 11 मिनट से 03 बजकर 25 तक।


द्वितीया तिथि आरम्भ: रात्रि 11 बजकर 05 मिनट से (नवम्बर 05)।


द्वितीया तिथि समाप्त: संध्या 07 बजकर 41 मिनट तक (नवम्बर 06)।


6 नवम्बर शनिवार के दिन अभिजित मुहूर्त दिन 11:39 से 12:22 बजे तक रहेगा मुहूर्त के समय तिलक करने में असमर्थ लोग अभिजीत मुहूर्त में भी तिलक कर सकते है। 


भाई दूज पर भाई को तिलक करने के लिये राहुकाल के समय को अशुभ माना जाता है। इस दिन राहू-काल प्रातः 09:17 बजे से 10:39 बजे तक रहेगा। इस समय मे भाई-दूज नहीं मनाना चाहिये।

प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

-प्रस्तुतिकरण-

पं. ऋषि राज मिश्रा

(ज्योतिष आचार्य)


।।जय जय श्री राम।।

।।हर हर महादेव।।

Wednesday, November 3, 2021

दिवाली पूजा मुहूर्त

 दिवाली पूजा मुहूर्त 06:09 PM से 08:04 PM

प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

आपको व आपके परिवार एवं इष्ट-मित्रों सहित सभी को हमारी ओर से दीपावली गोवर्धन पूजा एवं भाई दूज की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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               लक्ष्मी-गणेश पूजन की विधि

अक्सर इस बात को लेकर लोगों में संशय रहता है कि दिवाली की पूजा किस दिशा में की जाए ? दीपावली पूजन उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में करना शुभ माना गया है,क्योंकि वास्तु में उत्तर दिशा को धन की दिशा माना गया है। पूजन करते समय साधक का मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। उत्तर दिशा चूंकि धन की दिशा है इसलिए यह क्षेत्र यक्ष साधना (कुबेर),लक्ष्मी पूजन और गणेश पूजन के लिए आदर्श स्थान है। 


- लक्ष्मी पूजा से पहले पूरे घर की साफ-सफाई अच्छी तरह कर लें. घर में गंगाजल का छिड़काव करें. पूरे घर को फूलों और रौशनी से सजाएं.

- मुख्य द्वार को फूलों और तोरण से सजाएं, मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं.

-बसे पहले पूजा का संकल्प लें

श्रीगणेश, लक्ष्मी, सरस्वती जी के साथ कुबेर जी के सामने एक-एक करके सामग्री अर्पित करें

इसके बाद देवी-देवताओं के सामने घी के दीए प्रवज्जलित करें

-पूजा स्थल पर एक चौकी रखें. उस पर लाल कपड़ा बिछाकर वहां मां लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा स्थापित करें.

-चौकी के पास जल से भरा कलश भी रखें.

-माता लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा पर रोली से तिलक लगाएं. घी का दीपक जला कर रखें.

-जल, मौली, फल, अबीर-गुलाल, गुड़, हल्दी, चावल अर्पित करें.

- मिठाई का भोग लगाएं.

- पूजा के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरणों की पूजा करें.

-पूजा पूरी करने के बाद अंत में माता लक्ष्मी की आरती करें.

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                         दिवाली पूजा मंत्र

मां लक्ष्मी मंत्र- ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

सौभाग्य प्राप्ति मंत्र- ऊं श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।

कुबेर मंत्र-ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।

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           दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा का महत्व

दीपावली के दिन शाम या रात के समय लक्ष्मी पूजा की जाती है. मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या की रात को देवी लक्ष्मी स्वयं धरती पर भ्रमण करने आती हैं और प्रत्येक घर में विचरण करती हैं. इस दौरान जो घर साफ-सुथरा और प्रकाशवान होता है वहां देवी लक्ष्मी ठहर जाती हैं. इसलिए दिवाली से पहले ही घरों की अच्छी तरह से साफ-सफाई की जाती है.


दिवाली के त्योहार को दीप पर्व अर्थात दीपों का त्योहार कहा जाता है। दिवाली के दीप जले तो समझो बच्चों के दिलों में फूल खिले, फुलझड़ियां छूटी और पटाखे उड़े... क्यों न हो ऐसा? ये सब त्योहार का हिस्सा हैं, आनंद का स्रोत हैं।

 


दीप पर्व अथवा दिवाली क्यों मनाई जाती है? इसके पीछे अलग-अलग कहानियां हैं, अलग-अलग परंपराएं हैं। कहते हैं कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या नगरी लौटे थे, तब उनकी प्रजा ने मकानों की सफाई की और दीप जलाकर उनका स्वागत किया। 

 

दूसरी कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध करके प्रजा को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई तो द्वारका की प्रजा ने दीपक जलाकर उनको धन्यवाद दिया। 

 

एक और परंपरा के अनुसार सतयुग में जब समुद्र मंथन हुआ तो धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी के प्रकट होने पर दीप जलाकर आनंद व्यक्त किया गया। 

 

जो भी कथा हो, ये बात निश्चित है कि दीपक आनंद प्रकट करने के लिए जलाए जाते हैं... खुशियां बांटने का काम करते हैं।

 

भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है, क्योंकि वो स्वयं जलता है, पर दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेषता के कारण धार्मिक पुस्तकों में उसे ब्रह्मा स्वरूप माना जाता है।

 

ये भी कहा जाता है कि 'दीपदान' से शारीरिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता है, वहां दीपक का प्रकाश पहुंच जाता है। दीपक को सूर्य का भाग 'सूर्यांश संभवो दीप:' कहा जाता है।

 

धार्मिक पुस्तक 'स्कंद पुराण' के अनुसार दीपक का जन्म यज्ञ से हुआ है। यज्ञ देवताओं और मनुष्य के मध्य संवाद साधने का माध्यम है। यज्ञ की अग्नि से जन्मे दीपक पूजा का महत्वपूर्ण भाग है।



जब सूर्य का जन्म हुआ, तब उसने संपूर्ण दिवस संसार को अपने प्रकाश से आलोकित किया। जैसे-जैसे उसके अस्त होने का समय समीप आने लगा, उसे ये चिंता होने लगी कि अब क्या होगा? उसके अस्त होने के पश्चात दुनिया में अंधकार फैल जाएगा। कौन मानव के काम आएगा? कौन उन्हें रास्ता दिखाएगा?

 

सहसा एक आवाज आई- आप चिंतित न हों। मैं हूं ना! मैं एक छोटा-सा दीपक हूं, पर प्रात:काल तक अर्थात आपके उदय होने तक मैं अपने सामर्थ्यभर संसार को प्रकाश देने का प्रयत्न करूंगा। 

 

सूर्य ने संतोष की सांस ली और अस्त हो गया।

 

दीपक का आरंभ कब हुआ? कहां हुआ? ये निश्चित रूप से कहना कठिन है। अनुमान है कि प्राचीन समय में जब मानव ने अग्नि की खोज की होगी, तभी दीपक अस्तित्व में आए होंगे।

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दिवालीकी हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपका-

प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

-प्रस्तुतिकरण-

पं. ऋषि राज मिश्रा

(ज्योतिष आचार्य)


                    ।।जय जय श्री राम।।

                     ।।हर हर महादेव।।

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 તુટેલું ચંપલ આ લેખ વાંચીને જો આંખોના ખૂણા આંસુથી ના ભરાય તો સમજવું કે લાગણી કે માનવતા જેવા ગુણો ની ઉણપ છે.


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કેટકેટલીયે અમૂંઝણો અને રાતોની રાતોના ઉચાટથી બકુલભાઇ ત્રાસી ગયા હતા. લૉકડાઉન ક્યારનુંયે ભલે પત્યું હોય પણ તેમની જિંદગીનું લૉકડાઉન હજુયે પત્યું નહોતું. પહેલા નોકરી ગઇ અને પછી ઘરની આર્થિક સ્થિતિ સાવ નબળી બની ગઇ હતી. ‘દુકાળમાં અધિક માસ’ની જેમ જિંદગી રોજે રોજ નવી ઉપાધિઓ લઇને આવતી હતી. બાકી રહી ગયું હતું કે કોરોના થયો અને શરીરનું જોમ પણ લઇ ગયું,,,..! તે પછી તેમની માનસિક હાલત સાવ કથળવા લાગી હતી. જીવવાના બધા જોશ પણ ધીરે ધીરે ઓસરવા લાગ્યા હતા.



વ્યાજે લીધેલ પૈસાની રોજ આવતી ઉઘરાણીઓ, છેલ્લા છ માસનું બાકી ઘરભાડું અને હવે મકાનમાલિકની રોજેરોજ ઘર ખાલી કરાવવાની ધમકીઓ, વિક્રાંતની સ્કૂલ ફી... અરે હવે તો ઘર ચલાવાના’ય સાંસા પડવા લાગ્યા હતા. કૃપા બિચારી ઘરકામ કરીને મદદ કરવા મહેનત કરી રહી હતી. એના પિયરમાં થોડું સુખ હતું પણ કૃપા મારા જીવતે જીવત ક્યારેય પિયર નહી જાય...! પોતે એમની પાસેથી પહેલા પણ મદદ લઇ ચૂક્યો હતો એટલે હવે હાથ લંબાવવા શરમ આવતી હતી...!! જીવવાના બધા રસ્તાઓ ધીરે ધીરે બંધ થઇ રહ્યા હોય તેમ બકુલભાઇની માનસિક હાલત ધીરે ધીરે બગડી રહી હતી.



એક દિવસ આખરે થાકીને બકુલભાઇએ છેલ્લો નિર્ણય કરીને ઘરની બહાર પગ મૂક્યો.



‘ક્યાં જાવ છો ?’ કૃપા એમને કંઇ કીધા વિના બહાર જતા જોઇ ઉંબરે આવીને બોલી.



‘આ તો ચંપલ તુટી ગયું છે.. જરા સંધાવી લાવું...!! અને નોકરી માટે તપાસ કરી આવું...!!’ નજર મિલાવ્યા વિના બકુલભાઇ કૃપા તરફ પીઠ ફેરવીને ચાલ્યા ગયા. 



બકુલભાઇ શહેરના ધમધમતા વાતાવરણમાં દરરોજ કોઇ કામ માટે નીકળતા... કોઇ’દી સારો હોય તો મજુરી મળતી નહિ તો નદી કિનારે બેસીને ખારીસીંગ ખાઇને પાણી પી લેતા. આજે પણ એમને ખારીસીંગનું પડીકું લીધું અને ધીરે ધીરે એકપછી એક સીંગદાણાને સાવ ખાલી પેટમાં પધરાવ્યા...!!. ક્યારેક પેટ દુ:ખી જતું પણ એ દુ:ખ જિંદગીના દુ:ખોના પહાડ સામે તે સામાન્ય હતું. પડીકું ખાલી થયું અને તેના ફોતરાં નીચે રહેલા જૂના છાપામાં એક ન્યુઝ પર નજર ફરવા લાગી. ‘આર્થિક તંગીથી કંટાળીને એક આધેડે નદીમાં કરી આત્મહત્યા...!!’ બકુલભાઇની નજર થોડીવાર તેમાં ચોંટી અને પછી નદીના વહેતા પાણી તરફ જોઇ લીધું. 



એક ઉંડો શ્વાસ લઇને તે કાગળના ડૂચાને મુઠ્ઠીમાં બંધ કરી નદીના પુલ તરફ આગળ વધ્યા. જ્યારે તે પુલની બરાબર મધ્યમાં આવ્યા ત્યારે નીચે ઉછળતાં પાણી તરફ દ્રષ્ટી કરી અને જિંદગીની અનેક નિરાશાના વમળો નીચેના પાણીમાં દેખાવા લાગ્યા. ‘આ વમળો જ મારી બધી સમસ્યાનો અંત છે, હારી ગયો છું હવે નહિ જીવાય...!!’ હૃદયનો વિલાપ અને આંખોના વહેતા આંસુ બકુલભાઇની જીવવાની ઇચ્છાને ધૂંધળી બનાવી રહ્યા હતા. પુલ પર પોતાના બન્ને હાથની હથેળી દબાવી અને કુદી પડવા મન મક્કમ બન્યું...! પુલ પર બધા પોતપોતાની જિંદગીમાં વ્યસ્ત હતા... તેમને આંખો મીંચી....અંદરથી એક ઉંડો વલોપાત ઉઠ્યો... ભગવાન પાસે મનોમન માફી માંગી.... હાથમાં કોકડું વળી ગયેલા કાગળની અંદર આવતીકાલે પોતાની તસ્વીર છપાશે તેવું પણ દેખાઇ ગયું...!! છેલ્લે છેલ્લે વિક્રાંત અને કૃપાનો ચહેરો નજર સામે દેખાયો...!! 



જ્યાં મન જ હારી ગયું હોય ત્યાં આશાના કિરણો પણ અંધકારમય લાગતા હોય છે એમ બકુલભાઇની સામે ઘોર અંધકાર જ બચ્યો હતો…! કૃપાનો કાયમનો સાથ છોડીને અને વિક્રાંતને અનાથ મુકીને તેમને આત્મહત્યા કરવાનું નક્કી જ કરી લીધું. 



એક પગ ઉંચો કર્યો અને કેડ જેટલી ઉંચી પુલની પાળી પર મુક્યો...! મોત માટે છેલ્લી છલાંગ ભરવાની ઘડી આવી પહોંચી હતી...!!





ત્યાં જ... એક નાનો છોકરો અચાનક જ બકુલભાઇની પાસે આવ્યો અને બોલ્યો... ‘અંકલ, તમારું ચંપલ તુટી ગયું છે... લાવો સાંધી દઉ...!!’



અને એકાએક બકુલભાઇ ઘોર અંધકારમાંથી બહાર આવ્યા...!! પગ નીચે કર્યો.... સામે વિક્રાંત જેવડા જ છોકરાને ઉભેલો જોઇ તે રડી પડ્યા...!!



‘કેમ રડો છો અંકલ ?’



‘મારી પાસે પૈસા નથી...!!’ બકુલભાઇ એટલું જ બોલી શક્યા અને હિબકાં ભરાઇ ગયા.




‘અરે, એમાં શું ? પૈસા પછી આપજો પણ આમ તુટેલું ચંપલ થોડું પહેરાય... લાવો... લાવો...!!’ તેના શબ્દોમાં તાજગી હતી.




‘પણ તું મને ક્યાં ઓળખે છે ? અને તારા પૈસા હું તને ક્યારે આપીશ એ પણ ખબર નથી.’ બકુલભાઇ તેની સાથે વાત કરતા થોડા સ્વસ્થ બન્યા.




‘અરે અંકલ તમે ટેન્શન બહુ લો છો... મારી ફી કાંઇ લાખોમાં થોડી છે કે તમે નહી આપો તો હું મરી જઇશ ? આ તમારું ચંપલ સારુ રહેશે તો તમે મને યાદ તો કરશો’ને એટલુંયે ઘણું છે...! લો આ જુનું ચંપલ પહેરો અને તમારું ચંપલ લાવો.’ તેને એક તુટેલું ચંપલ બકુલભાઇને આપ્યું અને પરાણે બકુલભાઇના પગનું ચંપલ લઇ તેના કામે વળગી ગયો.




બકુલભાઇ ત્યાં જ તેની પાસે બેસી ગયા. તે સારી રીતે કામ કરી રહ્યો હતો. બકુલભાઇ થોડી સેકન્ડ પહેલાના ભૂતકાળમાં ગયા અને પોતે ખરેખર શું કરવા જઇ રહ્યા હતા તેનું ભાન થયું...!! હવે વિક્રાંત અને કૃપાનો ચહેરો પણ સ્પષ્ટ દેખાવા લાગ્યો હતો.. તે અત્યારે આ છોકરાને કારણે જ આત્મહત્યાના માર્ગેથી પાછા વળ્યા હતા.




થોડીવારમાં જ તેને તેનું કામ પુરુ કર્યુ, ‘લો અંકલ તમારું ચંપલ..!! હવે બે વર્ષ સુધી આ ચંપલને કંઇ થાય તો મને કહેજો....!!’ તેને બકુલભાઈના ચંપલને જ નહી પણ તેમની જિંદગીને સાંધી આપી હતી.




‘વાહ, સરસ કર્યુ છે તેં...!! હવે કહે કે કેટલા થયા ?’ બકુલભાઇએ તેની ચમકતી આંખોમાં જોઇએ કહ્યું.




‘અંકલ, તમારી પાસે પૈસા જ નથી તો મને શું આપશો ?’ તેના શબ્દોમાં મીઠાશની સાથે સચ્ચાઇ પણ રણકી રહી હતી.




‘સારું, એટલું કહે કે તું ક્યાં મળીશ ?’




‘આ પુલ પર સામે છેડે બેસુ છું...!!’ તેને સહજ રીતે જવાબ આપ્યો.




‘સારુ તો આ પુલ પર ફરી મળે ત્યારે કેટલા આપવાના થશે એ તો કહે...?’ બકુલભાઇ હવે સંપૂર્ણ સ્વસ્થ હતા.




તે થોડીવાર માટે બકુલભાઇની આંખમાં રહસ્યમયી નજરે જોઇ રહ્યો અને પછી બોલ્યો, ‘અંકલ, એક વાત કહું... ગમે તે થાય પણ આ રીતે આ પુલ પર બીજીવાર ન આવતા...મારે બસ એટલું જ જોઇએ છે...!!’ બકુલભાઇ તેના શબ્દોની અને તેની આંખોની ભાષા સમજી ચુક્યા અને સાવ નિ:શબ્દ તેની સામે તાકી રહ્યા. તે તેની ઉંમર કરતા વધુ સમજદાર હતો.




તે ઉભો થયો અને તેને તેની વસ્તુઓ તેના થેલામાં ફરી ગોઠવવા માંડી. બકુલભાઈએ તેમના પગમાં રહેલું પેલું તુટેલું ચંપલ તેને પાછું આપ્યું અને પૂછ્યું, ‘તું સરસ ચંપલ સાંધે છે તો આ જુના ચંપલને કેમ નથી સાંધી દેતો ?’




‘એ મારા પપ્પાની યાદગીરી છે...!’એટલું કહેતા જ તેના આંખમાં ઝળઝળીયા આવી ગયા અને મોં ફેરવી લીધું.




‘કેમ, તારા પપ્પા ક્યાં છે ?’ બકુલભાઇને તેની વાતમાં રસ જાગ્યો.




તેને નદી તરફ મોં રાખીને જ જવાબ આપ્યો, ‘દસ દિવસ પહેલા જ આ નદીમાંથી એમની લાશ મળી હતી...!! એમને આ પુલ પરથી જ આત્મહત્યા કરી હતી... છાપામાં પણ આવ્યું હતું... એમના એક પગનું આ તુટેલું ચંપલ અહીં રહી ગયું હતું... તે અહીં સામે જ વર્ષોથી બુટપૉલિસ કરતા હતા... કોરોનામાં ઘરની હાલત બગડી ગઇ... એ સહન ન કરી શક્યા અને એમને.......!!’ તે રડી રહ્યો હતો.... પણ થોડીવારમાં જ તે ફરી સ્વસ્થ થઇને બોલ્યો, ‘ આ પુલ પર કેટલાય આવે છે અને પોતાની જિંદગી ટુંકાવી તેના પરિવારને અપાર દુ:ખમાં મુકીને એકલા સુખી થવા ચાલ્યા જાય છે... પણ એમને ક્યાં ખબર હોય છે કે એમના ગયા પછી દુ:ખ ઉલ્ટાનું વધે છે...!! એ પછી મને થયું કે હું અહીં જ આમતેમ ફરતો રહીશ અને કોઇપણ આત્મહત્યા કરવા આવે તો તેને બચાવવા હું મથતો રહીશ... કોઇની તુટેલી જિંદગીને ફરી સાંધી આપવા પ્રયત્ન કરીશ....’ તેનો ડૂમો બાઝી ગયો હતો એટલે તે ત્યાંથી ચાલતો થયો.




બકુલભાઇ તેને સાંભળ્યા પછી પોતાની ભૂલ સમજી ચુક્યા હતા અને સરખી રીતે પોતાના સંધાયેલા ચંપલને જોઇને પોતાની ભૂલ બદલ રડી પડ્યાં. 








વાયરસ અને માણસની લડાઈની એક અદભૂત નવલકથા






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Monday, November 1, 2021

ધનતેરસ વિશે જાણો

           🔱 ધનતેરશની  શુભકામના  🔱


અષ્ટ પ્રકારની  લક્ષ્મી  હોય  છે. 

૧. ધન  લક્ષ્મી  : જેનાથી  તમારી  અર્થવ્યવસ્થા સુદ્રઢ  થાય. 

૨. ધાન્ય  લક્ષ્મી  : આજીવન  તમારા શરીરને  પોષણ  આપનારું  અન્ન  મળી  રહે.

૩. ધૈર્ય લક્ષ્મી : તમારા જીવનમાંથી  ધીરજ ખૂટે નહિ. 

૪. શૌર્ય  લક્ષ્મી : જીવનમાં  વિકટ પરિસ્થિતિનો  પ્રતિકાર કરવાની  શક્તિ. 



૫. વિદ્યા  લક્ષ્મી : જીવનમાં શારીરિક, માનસિક, કૌટુંબિક, આધ્યાત્મિક  ઉન્નત્તિ  કરાવનારી વિદ્યા પ્રાપ્ત થાય. 

૬. ક્રિયા  લક્ષ્મી : જીવનમાં  શારીરિક, માનસિક, ધાર્મિક, આધ્યાત્મિક, ઉન્નતિ કરાવનાર  કર્મ થાય. 

૭. વિજય  લક્ષ્મી  :  જીવનનાં  દરેક  ક્ષેત્રમાં સફળતારુપી  વિજયની પ્રાપ્તિ. 

૮. રાજ્ય  લક્ષ્મી : જે પ્રદેશમાં  રહેતા હોય તે સમૃદ્ધ હોય. 


આમ આ આઠ  પ્રકારની  લક્ષ્મીનો  તમારા જીવનમાં વાસ થાય અને તમારું જીવન શારીરિક, માનસિક, આર્થિક અને  આધ્યાત્મિક ક્ષેત્રે  સમૃદ્ધ  બને  એવી  ભગવાનનાં ચરણમાં પ્રાર્થના !

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क्या आप जानते हैं कि..

धनतेरस का महापर्व क्या है... और, ये क्यों मनाया जाता है 


अधिकतर लोग इसे धन की पूजा मानते हैं ...तथा, इस दिन महंगे धातु खरीदते हैं... क्योंकि, हमने बचपन से ही अपने घर के लोगों को ऐसा करते देखते आए हैं ...और, इसे दीपावली के एक भाग के तौर पर मनाते हैं.


जबकि, सच्चाई थोड़ी भिन्न है... और, "धनतेरस" में.... "धन" शब्द देखकर इसे "धन की देवी माँ लक्ष्मी" से जोड़ना बहुत कुछ वैसा ही होगा .....जैसे कि, हमारे इतिहासकारों ने "कुतुबमीनार" में "कुतुब" शब्द देखकर उसे " कुतुबुद्दीन ऐबक" से जोड़ दिया...


या फिर... कोई "राहुल गांधी" शब्द में "गांधी" शब्द देखकर उसे "मोहन दास करमचंद गांधी" से जोड़ दे...!


खैर... धनतेरस के महापर्व.... "धन की देवी लक्ष्मी" के लिए नहीं बल्कि....


ब्रह्माण्ड के पहले चिकित्सक ""धन्वन्तरी"" की याद में मनाया जाता है... क्योंकि, वस्तुतः स्वास्थ्य ही सबसे "अमूल्य धन" है...!


लेकिन सिर्फ इतना ही बताने पर... कुछ मूर्ख और अल्पबुद्धि सेक्युलर प्राणी ये प्रश्न कर सकते हैं कि...... भाई... अगर स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है तो... आज के दिन .... कोई दवाई वगैरह खाना चाहिए..... भला आज के दिन धातु की खरीददारी क्यों की जाती है....?????


इसीलिए.... आगे बढ़ने से पहले... ये बताना परम आवश्यक है कि...... आज के ही दिन ..... मतलब ... कार्तिक महीने के 13 वें दिन.... समुद्र मंथन के दौरान...... दुनिया के प्रथम चिकिसक .... भगवान् धन्वन्तरी ..... हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे...... 


और, ऐसी मान्यता है कि.... आज के दिन धातु के बर्तन घर लाने से.... उसके साथ अमृत के अंश भी घर आते हैं..... 


और, अमृत..... अच्छे स्वास्थ्य एवं लंबी उम्र की गारंटी होती है..... इसीलिए, आज धनतेरस के दिन दवाई ना खा कर..... धातु ख़रीदा जाता है..... 


क्योंकि, दवाई से तो बीमारी का तात्कालिक समाधान होगा ... जबकि अमृत घर लाने से... बीमारी ही नहीं आएगी...!


अब साथ ही मैं यह भी बताना चाहूँगा कि..... जिस किसी भी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े लोगों को समुद्र मंथन की घटना काल्पनिक लगती हो... वे भागलपुर (बिहार) जाकर वहाँ मौजूद "मंदारहिल"" पर्वत देख सकते हैं..... जो आज भी मौजूद है..... और उस पर... समुद्र मंथन के दौरान हुए रस्सी (बासुकी नाग) के रगड़ के निशान अभी तक मौजूद हैं...!


खैर आगे बढ़ते हैं......


धनतेरस के बारे में एक बहुत ही प्रचलित किवदंती यह भी है कि.....


राजा हिमा का एक 16 साल का पुत्र था... जो कि कुंडली के अनुसार अल्पायु था..... और, कुंडली के अनुसार शादी के चौथे दिन .. उसकी मृत्यु सर्पदंश से होनी थी...!


परन्तु... शादी के चौथे दिन .. उसकी युवा और चतुर पत्नी ने .... राजकुमार को कहानियां एवं गीत सुना कर उसे रात भर सोने नहीं दिया..... और, राजकुमार के चारो तरफ दीप प्रज्ज्वलित कर दिया.... साथ ही शयनकक्ष के बाहर.... सोने-चाँदी.. के सिक्कों की ढेर लगा कर रख दी.....!


विधि के विधान के अनुसार .... समय पर नागिन के रूप में यमदूत आए.... परन्तु, सोने-चाँदी के सिक्कों की चमक के कारण.. नागिन की आँखें चौंधिया गयी और वो आगे नहीं बढ़ पायी.... और वहीँ.... बैठ गयी.....(यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि... सांप बहुत तेज रोशनी में नहीं देख पाते हैं) .. और अगली सुबह वापस लौट गयी....!


इस तरह... राजकुमार की युवा पत्नी ने अपने चातुर्य एवं कौशल से उस मनहूस घडी को टाल दिया और....अपने पति को बचा लिया.... !


इसीलिए ... आज की रात को ""यमदीपदान"" के रूप में भी मनाया जाता है.... और, रात भर दीप जला कर ... बाहर जल रखा जाता है...!


इसीलिए, अपने त्योहारों की सम्पूर्ण जानकारी रखें और उसे पूरे हर्षो-उल्लास के साथ मनाएँ.


आखिर... जब हमें जानकारी होगी तभी तो हम अपने बच्चों को अपने त्योहारों के बारे में पूरी जानकारी दे पाएंगे...!


इसके साथ ही ... मेरे सभी मित्रो एवं उनके सम्पूर्ण परिवारजनों को...... अच्छे स्वास्थ्य एवं लंबी आयु की कामना के साथ.... *"धनतेरस छौटी दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ "....!*


जय महाकाल...!!!


नोट : इस दिन लोग बहुतायत में कार /बाइक वगैरह भी खरीदते हैं... और, ऐसा मानते हैं कि आज के दिन के खरीदे गए वाहन शुभ होते हैं और वो आपातकाल में उनके मूल्यवान जीवन की रक्षा करेगी.

प्रथम श्री रामचरितमानस संघ ट्रस्ट,नई दिल्ली

-प्रस्तुतिकरण-

पं. ऋषि राज मिश्रा

(ज्योतिष आचार्य)


                         ।।जय जय श्री राम।।

                          ।।हर हर महादेव।।

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